आप सोच रहे होंगे की गणित को युद्ध में कैसे प्रयोग किया जा सकता है पर चौंकिए नहीं युद्ध में गणित का प्रयोग प्राचीन समय से होता आ रहा है . ईसा पूर्व 18 वी शदी के बेबीलोनियन पट्टी में युद्ध में पकडे सैनिको के बारे में जानकारी मिलती है साथ ही युद्ध की योजना जैसे- बंकर बनाने में कितने ईंटो की आवश्यकता होगी , छिपने के लिए जमीन को कितना गहरा कर खोदना पड़ेगा और युद्ध बंदियों को रखने के लिए बनाये जाने वाले जेल में कमरे की संख्या का आकलन करने के लिए प्राचीन समय में भी गणना के लिए गणित का प्रयोग किया जाता रहा है .
ईसा पूर्व 18 वी शदी के बेबीलोनियन पट्टी त्रेता युग में जब सीता का अपहरण कर रावण लंका ले गए और श्री राम के लाख प्रयासों के बाबजूद युद्ध अवश्यम्भावी हो गया तो श्री राम की सेना ने लंका की ओर कूच किया और इसके लिए समुद्र पर 100 योजन लम्बा और 10 योजन चौड़ा पुल का निर्माण किया गया. श्री राम की विशाल सेना देख रावण आशंकित हो गया और अपने गुप्तचर शुक को श्री राम की सेन्य बल का पता लगाने के लिए भेजा . शुक बानर का रूप धारण कर श्री राम के सेना में शामिल हो गया और वहां के युद्ध तैयारी का पता लगाया और फिर लंका पहुंचकर श्री राम की सेना के वारे में जो सुचना दी उसका विवरण श्री वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार दिया है – इस श्लोक में 1060 तक की संख्या जिसे महौघ कहा जाता था का उल्लेख दिखता है .
अतः श्री राम की विशाल सैन्यबल की कल्पना करना अपने आप में एक डर पैदा करता है . क्या आप जानते है की पृथ्वी का क्षेत्रफल 1016 वर्ग फीट से कम है तो इतनी बड़ी सेना के लिए धरती पर खड़ा होना और युद्ध करना भी असंभव प्रतीत होता है और शायद इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा – राम ते अधिक राम कर दासा. इसी प्रकार महाभारत की युद्ध में भी सेना के प्रकार और उसमे सेना की संख्या के बारे में गणना का विवरण दिखता है जी गणित के सार्थक ज्ञान के विना संभव नहीं था . इस श्लोक के अनुसार प्रत्येक रथ में 4 घोड़े को बांधा जाता था और 100 धनुष रखने की व्यवस्था थी . एक रथ के पीछे 10 हाथी और एक हाथी के पीछे 10 घोड़े और एक घोड़े के पीछे 10 पैदल सेना चलती थी . इसका मतलब 1 रथ के पीछे 10 हाथी , 100 घोड़े और 1000 सैन्यबल चलता था और यह सभी संख्या गुणोत्तर क्रम में दिखते हैं. यही नहीं 1 सेना में 500 हाथी और 500 रथ होते थे जिसका सीधा मतलब ये है की एक सेना में पैदल सैन्यबल = 500 x 1000 = 500000. महाभारत में अक्षोनी सेना के बारे में भी वर्णन मिलता है. अक्षोनी सेना का प्रयोग चतुरंग सेना के सन्दर्भ में होता है. एक चतुरंग सेना के चार अंग जिसमे – 1. रथ 2. हाथी 3. घोड़े और 4. पैदल सेना होते थे . एक अक्षोनी सेना के पास 21870 रथ , 21870 हाथी , 65610 घोड़े और 109350 पैदल सेना होते थे और मजे की बात ये है की इनका अनुपात 1 : 1 : 3 : 5 है . यदि एक रथ में सारथी और योद्धा मिलाकर 2 लोग मान लिया जाये तो इनके पीछे चलने वाले हाथी पर 2 लोग सवार हो तो 1 अक्षोनी में 183680 योद्धा होंगे. 2 × 21870 + 2× 21870 + 65610 + 109350 = 262440 उपरोक्त श्लोक के अनुसार पांडवो के पास 7 अक्षोनी सेना और कौरवों के पास 11 अक्षोनी सेना थे अर्थात दोनों के हिस्से में कुल 18 अक्षोनी सेना थे या यूँ कहा जाये तो 18 अक्षोनी में 4723920 सेना उनके तरफ से लड़ रहे थे . इस तरह के सेना किसी चिर परिचित राजा द्वारा उनके समर्थन में लड़ रहे हो सकते हैं पर पूरी महाभारत पढने के बाद आपको लगेगा की ये सेना की संख्या इससे कही अधिक थी . मसलन युद्ध समाप्ति के बाद जब धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से पूछा की युद्ध के उपरांत कितने सैनिक जीवित बचे और कितने वीर गति को प्राप्त हुए तो युधिष्ठिर का जबाब कुछ और ही बाते बयां करते हैं . युधिष्ठिर के अनुसार युद्ध में मरने बाले सैनिको की कुल संख्या 1 अरब 66 करोड़ 20 हज़ार तथा जिन्दा बचे सैनिको की संख्या 2 लाख 40 हज़ार एक सौ पेशा पैसठ है . महाभारत की लड़ाई की सबसे खास बात चक्रब्यूह की है . चक्रव्यूह या पद्मव्यूह सेनाओं का ऐसा समूह है जिसमे सैनिक 7 सकेंद्रिय वृत के रूप में एक चक्र की रचना करते थे और इसमें घुसने के एक ही रास्ते थे और योद्धा के इस व्यूह में घुसते ही व्यूह दायीं और घूम जाता और निकलने का रास्ता बदल जाता था और व्यूह के योद्धा अन्दर प्रवेश करने वाले योद्धा को मार देते थे . विकिपीडिया के अनुसार चक्रव्यूह की संरचना सैनिकों की एक वहू परतीय रक्षात्मक गठन को दिखता है जो ऊपर से देखने से एक कमल फूल जैसा दिखता था . इसमें हर परत के साथ सैनिकों की संख्या और योग्यता का स्तर बढ़ता जाता था और कृष्ण, अर्जुन , प्रद्युम्न और अभिमन्यु को छोड़ कर किसी पांडव योद्धा को चक्रव्यूह को तोड़ना नहीं आता था,
चक्रव्यूह सैनिकों के युद्ध में वृताकार , स्तम्भ , सारिणी , वर्गाकार और कील के आकार के रचना का उल्लेख पुस्तकों में मिलता है जहाँ सेनापति अपने सेना को अलग अलग आकृति के व्यूह रचना में युद्ध के लिए तैयार करते थे. ग्रीक लोगों के द्वारा वर्गाकार रचना में युद्ध लड़ने का उल्लेख मिलता है. क्या आप जानते है की युद्ध के लिए बनाये जाने वाले अधिकांश उपकरण – जहाज, पनडुब्बी , हथियार, टेलिस्कोप, गोला –बारूद, कैमरा , दूरबीन बिना गणितीय ज्ञान के बनाना संभव ही नहीं है . सेराक्युस शहर की रक्षा के लिए आर्कमिडीज ने एक पंजा डिजाईन किया था जिसमे एक क्रेन जैसे भुजा थी जिससे एक बड़ा धातु का हुक लटका हुआ था .जब इस पंजे को एक आक्रमण करते हुए जहाज पर डाला जाता था तो इसकी भुजा ऊपर की ओर उठती थी और जहाज को उठाकर पानी में डूबा देती थी. यही नहीं सेराक्युस की घेराबंदी के दौरान आर्कमिडीज ने अपने द्वारा बनाये बड़े- बड़े दर्पण का उपयोग कर समुद्र में ही सेरिक्युस की ओर आने वाले जहाज को राजमहल से ही दर्पण द्वारा सूर्य के प्रकाश को फोकस कर आग के हवाले कर देते थे.
Archimedes Burning Mirror
15 वी शदी में तरताग्लिया (? 1500-1557) ने युद्ध प्रक्षेपकी के लिए एक नया सिधांत विकसित किया और इसका उपयोग गोली और गोला दागने में किया जाने लगा और सम्भबतः गणित का युद्ध के तकनीक में यह पहला प्रयोग हो.
राजेश कुमार ठाकुर
November 29, 2015
युद्ध और गणित (war and mathematics)
An author with 60 books, 62 e- books; columnist with 700 article published in various newspaper and magazine, blogger with 500 + blogs.
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Presently working at DIET Daryaganj as an Assistant Professor.
I am also the Resource person working with CBSE, NCERT, NIOS, VVM, SSUN, AIRMC, VIPNET,IISF, Sarayu Trust, RIT Chennai, etc.
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